The power of the human body and its energy is eternal. But it requires yoga, meditati

Meditation and drugs (LSD) part 2

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The unconscious must be cleaned. It must not be pre-burdened - it must not have seeds. Sabeej Samadhi is a Samadhi with seeds. A Samadhi with seeds means a Samadhi with your projections. It is not a Samadhi at all. It is just a name-sake. There is another term - Nirbeej Samadhi, a Samadhi which is seedless. Only a seedless Samadhi is Samadhi, which is authentic because there is nothing to be projected. It is not that you are projecting - something has come to you. You have encountered something. You have known something new, completely fresh, absolutely unknown before, not even imagined; because whatsoever you can imagine you can project. So knowledge is a hindrance in Samadhi and a person who is a 'knowing-person', can never reach Samadhi. You must not go burdened with knowledge. You must reach the door of Samadhi completely empty handed, naked, vacant, only then the authentic thing happens. Otherwise, you are meditating with the projections. You have been projecting in me

कुंडलिनी

कुंडलिनी जागरण को ज्यादा तर लोग बुद्धत्व की अवस्था समझ लेते हैं जिससे एक बड़े भ्रम का निर्माण होता है।  जिसका उपयोग अंततः मन ही तुमको और ज्यादा अहंकारी बनाने मे कर लेता है इसलिए ज़रूरी है। की इसके सभी पहलुओ से आपको परिचित करवाया जाये। 

प्रशन - कुंडलिनी जागरण क्या है इसका धर्म से क्या लेना देना ,, और इस अनुभव के बाद क्या बदलाव जीवन मे आते हैं। 
उत्तर - कुंडलिनी जागरण को जानना हो तो पहले हमे धर्म के रहस्यो को समझना होगा ... धर्म ने मनुष्य को 3 तलो मे बांटा है। 
1 - चेतन
2 - अचेतन
3 - अवचेतन
चेतन -- जो हम जागे हुए करते हैं जो हम देख सुन और महसूस कर पाते हैं। 

अचेतन -- जो हम देखने सुनने महसूस करने से चूक जाते हैं , वो अचेतन बन जाता है जब हम सोते हैं तो ज़्यादातर वही हमारे सपनों को जन्मने का कारण बनता है। 
अवचेतन  -- ये तल हमारे अंतस मे दबा हुआ वो हिस्सा है जिसमे हमारी चेतना उनसे स्मृतियों  के साथ कैद है। जिनहे हमने जन्मो जन्मो से इकट्ठा किया है। 
हम सभी दो तलो के अनुभव से गुजरे हुए हैं , चेतन और अचेतन ,, लेकिन धर्म मानता है कि जब तक हम अपने अवचेतन के तल तक नहीं पहुँचते हमारे जीवन मे मूलभूत परिवर्तन असंभव है।  ,, सभी ध्यान प्रयोगों  का एक ही काम होता है।  अवचेतन को जाग्रत करना ,, लेकिन सभी ध्यान के साथ एक दिक्कत है कि हम सब उन प्रयोगो को कर्म कांड बना लेते हैं।  ,, इसलिए हम अचेतन के तल से आगे नहीं बढ़ पाते ,,
अवचेतन मन जब जागता है तब हमारे शरीर की व्याधियों को वो खतम करता है जिससे वो अपनी यात्रा कर सके जिसके लिए उसने ये शरीर धारण किया था। 
और यहाँ से शुरू होता है कुंडलिनी जागरण का विज्ञान हमारे जीवन मे लोभ और भय बुरी तरह से कब्जा करे हुए हैं जिसके लिए वो काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष , आदि का सहारा लेती हैं यही मन है ..... जब तक हम मन के जाल से मुक्त नहीं होते हैं। तब तक हमारी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ नहीं होती ...... जब लोग साधना मे उतरते हैं तो उन्हे धीरे धीरे ये अनुभूति होती है कि काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष , आदि का जुड़ाव हमारे चक्रो से लेना देना है ,, जैसे जब किसी को कही से धन मिलने कि संभावना होती है तो उसकी नाभि के आस पास एक आभास सा बना रहता है , जिस कारण उसको भोजन भी करने का भाव नहीं होता ,, ऐसे ही जब कोई किसी के प्रेम मे होता है तो उसको हृदय के मध्य मे एक मीठी सी चुभन महसूस होती है ...
जब साधको ने ऐसा महसूस किया तो उन्हे लगा कि ऐसे ऊर्जा इन चक्रो मे फस जाती है यदि किसी तरह से इन चक्रो को खोला जा सके तो हम इन काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष , के दवाव से मुक्त हो सकते हैं ॥
यही विचार आगे चल कर कुंडलिनी जागरण के विज्ञान के रूप मे तब्दील हो गया। 
जब भी किसी इंसान को कुंडलिनी जागरण का अनुभव होता है तो वो अचानक पाता है कि वो अचानक ही काम , क्रोध , लोभ , मोह के सारे दवाव से मुक्त हो गया ,,, अब न उसे कोई भय है न ही कोई लालच ... लेकिन ये अनुभव अभी संबोधि क अनुभव नहीं कहा जा सकता ... इसमे बस इतना ही हुआ होता है कि अवचेतन मन को इस शरीर का इस्तेमाल अपनी यात्रा मे करने मे सुगमता होगी क्यूंकी इस शरीर को इस जन्म के समय से जो व्याधियाँ मिली थी उससे वो अब मुक्त हो चुका है ... ॥
प्रश्न --  जी एक बात बताइये , अगर हम ये माने कि हमारे चक्र दूषित होते हैं तो ये दूषित कैसे होते हैं ,, और क्या इससे बचने का कोई उपाय है।                 

उत्तर - जब कोई चेतना गर्भ-धारण करती है तो उस समय उस जोड़े के पास कुछ विचार होते हैं वो विचार ही शरीर के जन्म का कारण बनते हैं , और जैसे जैसे बच्चा माँ के गर्भ मे बढ़ता है उस माँ के चरो तरफ के वातावरण से मिलने वाले विचार उस बच्चे के अंदर के चक्रो को प्रभावित करते हैं ,, क्यूंकी हम जिस समाज मे रहते हैं वहाँ चरो तरफ के वातावरण मे भय और लालच फैला हुआ है जिसके परिणाम स्वरूप हम अपने बच्चो को उस शुद्ध स्थित मे जन्म नहीं दे पाते ...
मैं आपको कृष्ण का उदाहरण देते हुए सम्झना चाहता हूँ कि उनके माँ बाप वासुदेव और देवकी दोनों ही कई वर्षो तक जेल मे थे जिसके कारण उनसे समाज कट गया था और क्यूंकी वो दोनों अत्यधिक प्रेम पूर्ण थे इसलिए उनको वहाँ पर न तो अकेलेपन का भय था न ही दोनों के बीच किसी भी प्रकार का तनाव दोनों ही एक दूसरे के लिए पूरक थे ,,, ऐसे मे ही कोई दिव्य चेतना  जन्म लेती है ,,,,, और कृष्ण के संबंध मे हम सब जानते हैं कि वो कुंडलिनी जागरण के साथ ही पैदा हुए थे। उनके मेधावी होने का ये सबसे बड़ा कारण था। 
यदि हम ऐसे बच्चो को जन्म देना चाहते हैं तो हमे उसके जन्म देने से पहले ही कई प्रकार के आयोजन करने पड़ेंगे ,,, फिर ही वो संभव है .... लेकिन असंभव नहीं
प्रश्न - आदरणीय आपकी बातो मे रस आने लगा है , लेकिन हम ये पूंछना चाहते हैं कि कुंडलिनी जागरण को आप बुद्धत्व कि घटना क्यू नहीं कहते ,, और अगर ये घटना भी बुद्धत्व कि नहीं है तो क्या अभी साधक को और साधना या ध्यान करने कि आवश्यकता है। 


उत्तर - कोई भी व्यक्ति ध्यान साधना के माध्यम से जितना कर सकता है उतना कुंडलिनी जागरण के अनुभव तक ही कर सकता है ,, उसके बाद कि यात्रा अस्तित्व के हांथों मे ही है ... लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उसको कुछ भी नहीं करना है ,, कुछ सूत्र अभी बाकी रह जाते हैं जो केवल उनके साथ ही शेअर किए जा सकते हैं जो इस अनुभव को पा गए हैं ,,
दूसरी बात ये कि कुंडलिनी जागरण के अनुभव के बाद हम इस मन कि दुविधा  से मुक्त होते हैं जो हमे इस जीवन और इस शरीर से मिली ,, लेकिन अवचेतन मन मे अभी भी बहुत कुछ है जो बाहर आने को   है जब तक उसकी भी सफाई न हो जाये बुद्धत्व नहीं घटताहै। 

प्रश्न -  मैंने बहुत से लोगो को कहते सुना है कि उन्हे कुंडलिनी जागरण का अनुभव हुआ लेकिन मैं आज भी उनके जीवन मे लोभ और भय देखता हूँ इसका क्या मतलब है। 


उत्तर - ये बहुत ही अच्छा प्रशन है बहुत से लोगो को ये अनुभव होता है लेकिन जब तक ऊर्जा सभी चक्रो को तोड़ती हुई आज्ञा चक्र तक नहीं पहुँचती तब तक मैं उसे कुंडलिनी जागरण कि घटना नहीं मानता ,, ज्यादा तर लोगो कि ऊर्जा एक या दो चक्रो तक ही उठ पाती है और ये बिलकुल भी काम कि नहीं क्यूंकी कुछ ही वक़्त मे ये चक्र भी फिर पुराने तरह से काम करने लगते हैं ,, ये ऐसा ही है जैसे आप एक ऑफिस खोलो और उसमे मैनेजर न रखो ,, तो वहाँ के सारे कर्मचारी किसी के कंट्रोल मे नहीं रहेंगे ..... आज्ञा चक्र मैनेजर कि तरह है जो सबको अपने कंट्रोल मे रखता है ... लेकिन कुछ धर्मो मे ऐसा भी हुआ है कि केवल आज्ञा चक्र पर ही काम किया जिसके परिणाम ये हुए हैं कि लोग बिक्षिप्त हो गए .... क्यूंकी यदि किसी आफिस मे केवल मैनेजर ही हो तो पागल ही हो जाएगा सारा काम करते करतेहै। 

प्रश्न - हा हा हा बहुत बढ़िया ,, अच्छा  ये बताइये कि कुंडलिनी जागरण कि कोई खास विधि है। 


    उत्तर - नहीं इसकी कोई विधि नहीं होती ,, क्यूंकी यदि आपको कोई विधि बताई जाये तो उसके सारे उपयोग मन कर लेता है आपको भ्रम मे डालने के लिए और ऐसी घड़ी मे जब कोई अनुभव होने को भी हो तो या तो आपको लोभ घेर लेता है , या फिर भय ..... इसके लिए केवल स्थिति तैयार कि जा सकती है जो एक गुरु ही करता है ,,, जाग्रत , पूर्ण और साथ ही साथ जीवित जिसके साथ आप सीधे संवाद कर सको ॥ लेकिन वहाँ पर भी समर्पण के बगैर कुछ नहीं होगा , क्यूंकी कोई किसी को ज़बरदस्ती कुछ नहीं करा सकता .....
"यही अध्यात्म के सबसे गहरे रहस्यो मे से एक है कि बिन गुरु के कुछ नहीं और केवल गुरु के होने से भी सबकुछ नहीं  हैं। 

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