The power of the human body and its energy is eternal. But it requires yoga, meditati

Meditation and drugs (LSD) part 2

चित्र
The unconscious must be cleaned. It must not be pre-burdened - it must not have seeds. Sabeej Samadhi is a Samadhi with seeds. A Samadhi with seeds means a Samadhi with your projections. It is not a Samadhi at all. It is just a name-sake. There is another term - Nirbeej Samadhi, a Samadhi which is seedless. Only a seedless Samadhi is Samadhi, which is authentic because there is nothing to be projected. It is not that you are projecting - something has come to you. You have encountered something. You have known something new, completely fresh, absolutely unknown before, not even imagined; because whatsoever you can imagine you can project. So knowledge is a hindrance in Samadhi and a person who is a 'knowing-person', can never reach Samadhi. You must not go burdened with knowledge. You must reach the door of Samadhi completely empty handed, naked, vacant, only then the authentic thing happens. Otherwise, you are meditating with the projections. You have been projecting in me

तीसरा नेत्र

    
शिव ने कहा: आँख की पुतलियों को पंख की भांति छूने से उसके बीच का हलका पन ह्रदय में खुलता है।
अपनी दोनों हथेलियों का उपयोग करो, उन्‍हें अपनी बंद आँखो पर रखो, और हथेलियों को पुतलियों पर छू जाने दो—लेकिन पंख के जैसे, बिना कोई दबाव डाले। यदि दबाव डाला तो तुम चूक गए, तुम पूरी विधि से ही चूक गए। दबाव मत डालों; बस पंख की भांति छुओ। तुम्‍हें थोड़ा समायोजन करना होगा क्‍योंकि शुरू में तो तुम दबाब डालोगे। दबाव का कम से कम करते जाओ जब तक कि दबाब बिलकुल समाप्‍त न हो जाए—बस तुम्‍हारी हथैलियां पुतलियों को छुएँ। बस एक स्‍पर्श, बाना दबाव का एक मिलन क्‍योंकि यदि दबाव रहा तो यह विधि कार्य नहीं करेगी। तो बस एक पंख की भांति।
      क्‍यों?—क्‍योंकि जहां सुई का काम हो वहां तलवार कुछ भी नहीं कर सकती। यदि तुमने दबाव डाला, तो उसका गुणधर्म बदल गया—तुम आक्रामक हो गए। और जो ऊर्जा आंखों से बह रहा है वह बहुत सूक्ष्‍म है: थोड़ा सा दबाव, और वह संघर्ष करने लगती है जिससे एक प्रतिरोध पैदा हो जाता है। यदि तुम दबाव डालोगे तो जो ऊर्जा आंखों से बह रही है वह एक प्रतिरोध, एक लड़ाई शुरू कर देगी। एक संघर्ष छिड़ जाएगा। इसलिए दबाव मत डालों आंखों की ऊर्जा को थोड़े से दबाव का भी पता चल जाता है।
      वह ऊर्जा बहुत सूक्ष्‍म है, बहुत कोमल है। दबाव मत डालों—बस पंख की भांति, तुम्‍हारी हथैलियां ही छुएँ, जैसे कि स्‍पर्श हो ही न रहा हो। स्‍पर्श ऐसे करो जैसे कि वह स्‍पर्श ने हो, दबाव जरा भी न हो; बस एक स्‍पर्श, एक हलका-सा एहसास कि हथेली पुतली को छू रही है, बस।
      इससे क्‍या होगा? जब तुम बिना दबाव डाले हलके से छूते हो तो ऊर्जा भीतर की और जाने लगती है। यदि तुम दबाव डालों तो वह हाथ के साथ, हथेली के साथ लड़ने लगती है। और बहार निकल जाती है। हल्‍का-सा स्‍पर्श, और ऊर्जा भीतर जाने लगती है। द्वार बंद हो जाता है। बस द्वार बंद होता है और ऊर्जा वास लौट पड़ती है। जिस क्षण ऊर्जा वापस लौटती है, तुम आपने चेहरे और सिर पर एक हलकापन व्‍याप्‍त होता अनुभव करोगे। यह वापस लौटती ऊर्जा तुम्‍हें हल्‍का कर देती है।
      और इन दोनों आंखों के बीच में तीसरी आंख, प्रज्ञा-चक्षु है। ठीक दोनों आंखों के मध्‍य में तीसरी आँख है। आँखो से वापस लोटती ऊर्जा तीसरी आँख से टकराती है। यहीं कारण है कि व्‍यक्‍ति हल्‍का और जमीन से उठता हुआ अनुभव करता है। जैसे कि कोई गुरुत्वाकर्षण न रहा हो। और तीसरी आँख से ऊर्जा ह्रदय पर बरस जाती है; यह एक शारीरिक प्रक्रिया है: बूंद-बूंद करके ऊर्जा टपकती है। और तुम अत्‍यंत हल्‍कापन अपने ह्रदय में प्रवेश करता अनुभव करोगे। ह्रदय गति कम हो जाएगी। श्‍वास धीमी हो जाएगी। तुम्‍हारा पूरा शरीर विश्रांत अनुभव करेगा।
      यदि तुम गहन ध्‍यान में प्रवेश नहीं भी कर रहे हो, तो भी यह प्रयोग तुम्‍हें शारीरिक रूप से उपयोगी होगा। दिन में किसी भी समय, आराम से कुर्सी पर बैठ जाओ—या तुम्‍हारे पास यदि कुर्सी न हो, जब तुम रेलगाड़ी में सफर कर रहे हों—तो अपनी आंखें बंद कर लो। पूरे शरीर में एक विश्रांति अनुभव करो। और फिर दोनों हथेलियों को अपनी आंखों पर रख लो। लेकिन दबाव मत डालों—यह बड़ी महत्‍वपूर्ण बात है। बस पंख की भांति छुओ।
      जब तुम स्‍पर्श करो और दबाव न डालों, तो तुम्‍हारे विचार तत्‍क्षण रूक जाएंगे। विश्रांत मन में विचार नहीं चल सकते। वे जम जाते है। विचारों को उन्‍माद और बुखार की जरूरत होती है। उनके चलने के लिए तनाव की जरूरत होती है। वे तनाव के सहारे ही जीते है। जब आंखें शांत व शिथिल हों और ऊर्जा पीछे लौटने लगे तो विचार रूक जायेंगे। तुम्‍हें एक मस्‍ती का अनुभव होगा। जो रोज-रोज गहराता जाएगा।
      तो इस प्रयोग को दिन में कई बार करो। एक क्षण के लिए छूना भी अच्‍छा रहेगा। जब भी तुम्‍हारी आंखे थकी हुई ऊर्जा विहीन और चुकी हुई महसूस करें—पढ़कर, फिल्‍म देखकर, या टेलिविजन देखकर। जब भी तुम्‍हें ऐसा लगे, अपनी आंखे बंद कर लो। और स्‍पर्श करो मोर पंखी। तत्‍क्षण प्रभाव होगा। लेकिन यदि तुम इसे एक ध्‍यान बनाना चाहते हो तो इसे कम से कम चालीस मिनट के लिए करो। और पूरी बात यही है कि दबाव नहीं डालना। एक क्षण के लिए तो पंख जैसा स्‍पर्श सरल है; चालीस मिनट के लिए कठिन है। कई बार तुम भूल जाओगे और दबाव डालने लगोगे।
      दबाव मत डालों। चालीस मिनट के लिए वह बोध बनाए रहो कि तुम्‍हारे हाथों में कोई बोझ नहीं है। वे बस स्‍पर्श कर रहे है। यह बोध बनाए रहो कि वे दबाव नहीं डाल रहे है, बस स्‍पर्श कर रहे है। यह एक गहन बोध बन जाएगा। बिलकुल ऐसे जैसे श्‍वास-प्रश्‍वास। जैसे बुद्ध कहते है कि पूरे जाग कर श्‍वास लो। ऐसा ही स्‍पर्श के साथ भी होगा। तुम्‍हें सतत स्‍मरण रखना होगा कि तुम दबाव नहीं डाल रहे। तुम्‍हारा हाथ बस एक पंख, एक भारहीन वस्‍तु बन जाना चाहिए। जो बस छुए। तुम्‍हारा चित समग्ररतः: सचेत होकर वहां आंखों के पास लगा रहेगा। और ऊर्जा सतत बहती रहेगी। शुरू में तो वह बूंद-बूंद करके ही टपकेगी। कुछ ही महीनों में तुम्‍हें लगेगा वह सरिता सी हो गई है, और एक साल बीतते-बीतते तुम्‍हें लगेगा कि वह एक बाढ़ की तरह हो गई है। और जब ऐसा होता है—‘’आँख की पुतलियाँ को पंख की भांति छूने से उनके बीच का हलकापन...।‘’ जब तुम स्‍पर्श करोगे तो तुम्‍हें हलकापन महसूस कर सकते हो। जैसे की तुम स्‍पर्श करते हो, तत्क्षण एक हलकापन आ जाता है। और वह ‘’उनके बीच का हलकापन ह्रदय में खुलता है।‘’...वह हलकापन ह्रदय में प्रवेश कर जाता है, खुल जाता है। ह्रदय में केवल हलकापन ही प्रवेश कर सकता है। कोई भी बोझिल चीज प्रवेश नहीं कर सकती है। ह्रदय के साथ बहुत हल्‍की फुलकी घटनाएं ही घट सकती है।
      दोनों आंखों के बीच का यह हलकापन ह्रदय में टपकने लगेगा। और ह्रदय उसको ग्रहण करने के लिए खुल जाएगा—‘’और वहां ब्रह्मांड व्‍याप जाता है।‘’ और जैसे-जैसे यह बहती ऊर्जा पहले एक धारा, फिर एक सरिता और फिर एक बाढ़ बनती है तुम पूरी तरह बह जाओगे, दूर बह जाओगे। तुम्‍हें लगेगा ही नहीं कि तुम हो। तुम्‍हें लगेगा कि बस ब्रह्मांड ही है। श्‍वास लेते हुए, श्‍वास छोड़ते हुए तुम्‍हें ऐसा ही लगेगा। कि तुम ब्रह्मांड बन गए हो। ब्रह्मांड भीतर आता है और ब्रह्मांड बाहर जाता है। वह इकाई जो तुम सदा बने रहे।

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