Meditation and drugs (LSD) part 2

आज बहिर्मुख भौतिक शिक्षण पध्दती के कारण जगत में ऐसा भ्रम निर्माण हो गया है की पद , पैसा , प्रतिष्ठा , और शरीर ,मन , विचार , बुद्धी ,तर्क तथा पांच इंद्रियो के माध्यम से सुख की प्राप्ति होती है l इस समझ के कारण सब लोग extravert हो गये है , और extravert मन कभी भी आत्मज्ञान
को उपलब्ध नही हो सकता l
आत्मज्ञान का मतलब खुद के अस्तित्व के सभी स्तरों को अपरोक्ष तरीके से जान जाना l शरीर हमारे अस्तित्वका एक मात्र स्तर नही हैं , यह तो केवल अन्नमय कोष का स्तर हैं , इसके नीचे और चार कोष हैं जो हमारे ही अस्तित्व के स्तर हैं , यह सभी पांच कोष हम निचे दिये हुए तरीके से लिख सकते हैं
अन्नमय कोष (जागृती / conscious ) , जो पांच भुतात्मक स्तर है।
मनोमय कोष (स्वप्न / sub conscious), जो पृथ्वी तत्व छोड़ के बाकी चार तत्व रुपी स्तर है।
प्राणमय कोष (सुषुप्ती / unconscious) , यह स्तर सिर्फ दो तत्वसे बना है , आकाश तथा वायू (प्राण )l
विज्ञानमय कोष (तुरिया / ब्रह्म / onconscious )
इस स्तर मे सिर्फ आकाश तत्व predominantaly मौजूद रहता है l
आनंदमय कोष ( परब्रह्म / nothingness ) यह स्तर
चार वाचा / चार देह / चार अवस्था / चार कोष इन सबके परे है और यह अनिर्वाच्य कहा जाता है l
जागृती और स्वप्न तो हम जानते है लेकीन हमारे ही अस्तित्व के अन्तिम तीन स्तरों का हमे कुछ भी पता नही है l
इस अज्ञान या अविद्या , ignorance कहा जाता है l
सुषुप्ती का जो स्तर है वह अत्यंत भयानक तथा भयंकर भय का स्तर हैं , जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते , वही जीव का बीजभाव स्वरूप हैं l लगभग सभी साधक यहीं से वापस जागृती मे लौट जाते हैं ऐसा देखा गया हैं l जिसे असली सद्गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त है केवल वही इस स्तर को पार कर सकते है l
यह साक्षी की , समता की , संयम की , equanimity की सबसे कठिन परीक्षा होती है , यह परीक्षा जिसने पास कर दी वह ब्रह्ममयता को प्राप्त हो जाता है जो आकाश जैसी अवस्था है। वह हमारा ही विश्वात्मक स्वरुप हैं , जिसे universal consciousness या वैश्विक मन कहा जाता हैं l
इसके पार जो स्तर हैं वह मन के पार का स्तर हैं जिसे शब्द नही बयान कर सकते क्योंकि वह शब्दातीत स्तर हैं l
यह सभी स्तर अपरोक्ष तरीके से खुद के अंतरण में महसूस करना
आत्मज्ञान कहलाता हैं l
जिस साक्षीभाव की अवस्था में यह घटित होता हैं उसे maditation कहते है जो मात्र एक समझ हैं। अपने मन मे चलने वाली द्वैतात्मक , illusory time process ke प्रक्रिया की l जिस मन को इस द्वैतात्मक illusion producing process की पुरी समझ आती हैं समझो उस
मन मे आत्मज्ञान अपने आप प्रकट हो जाता हैं l
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